Saturday, June 17, 2023

हम बेल पर लगी ककड़ियाँ

 



एक उम्र ऐसी आती है कि हर महीने दो महीने में (पति के व्हट्स एप ग्रुप में ) समाचार आता है कि यह या वह चला गया. कोई सोए में तो कोई दो चार दिन की बीमारी में.

परसों जिनकी मृत्यु का समाचार मिला उन्हें मैं स्कूल के दिनों से जानती थी. बहुत ही प्यारे व्यक्ति. ( थे कहने में मन कचोटता है) उतने ही निरापद जितना कोई नवजात. लगभग दस वर्ष पहले पति उनसे मिले थे . उन्हें पार्किन्सन रोग था. वह ओजस्वी मित्र ऐसे रोग से जूझ रहा होंगे सोचकर मन खिन्न हो गया. हो सकता है मृत्यु शायद उनके लिए मुक्ति ही रही हो.
पति के रिटायर होते ही सबसे पहले जिनकी मृत्यु का समाचार मिला था वे घर आते रहते थे. फिटनेस के शौक़ीन वे जिम जाते थे. ६७ वर्ष के अविवाहित  व्यक्ति किसी के द्वारा अंकल कहलाना सह नहीं पाते थे. उनकी अस्सी वर्षीय माताजी उनसे भी अधिक शौक़ीन थीं. पार्टियों में अवश्य जातीं. ये मित्र सोए सोए संसार को विदा कह गए. उनकी माँ पर सुबह क्या गुज़री होगी सोच पाना भी कठिन था.

कोविड काल में तो हमारी उम्र के वृद्ध वृद्धा वैसे गए जैसे आंधी तूफ़ान में पुराने पेड़. कभी कभी लगता है जो जो मित्र चले गए उनकी एक सूची बनाई जाए. पता नहीं आखिरी व्यक्ति जो रह जाएगा कौन होगा और वह कितना अकेला होगा.
लगता है हम सब एक बेल पर लगी हुई ककड़ियाँ हैं. जो पक पक कर बेल से अलग हो रही हैं. हम जो इस आयु तक पहुंचे हैं कि अपने आप से बेल से अलग हो जा रहे हैं भाग्यवान हैं. वे जिन्हें अकाल मृत्यु ने बलात बेल से तोड़ लिया  कम भाग्यवान थे. कुछ वैसे ही जैसे जब बाल के गिरने का समय आ जाता है वह अपने आप झड़ जाता है. यदि उसे खींचकर निकाला जाए तो बहुत दर्द होता है.

उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् .
घुघूती बासूती 

Saturday, June 10, 2023

टपका

 टपका


शहरों में रहते हुए बहुत कुछ छूट जाता है, जैसे प्रकृति, खेत, फलों के बाग। सो शहरों के पास के किसानों ने अपनी आय का एक नया साधन ढूँढ लिया है। किसी ने फार्म हाउस बनाकर उसे किराए पर देना शुरू किया है, किसी ने आम के मौसम में आम पार्टी रखना शुरु किया है।

पहले से पैसे देकर आप आम पार्टी में जा सकते हैं। आम के बाग में आपका स्वागत होता है। वहाँ आप घूम फिर सकते हैं। चाय, जलपान, खाना पीना खरीदकर कर सकते हैं। आम तोडकर उन्हें तुलवाकर खरीद सकते हैं। फलों के जैम, मुरब्बे, अचार खरीद सकते हैं। कुछ फार्म में आप जानवरों को खिला पिला भी सकते हैं। 

हम भी अपनी नतिनी और उसके माता पिता के संग गए। नतिनी को लम्बे से डंडे से पेड़ से फल तोड़ना सबसे अधिक अच्छा लगा, उसके बाद उसे जानवरों को खिलाना पसन्द आया।

मैंने नतिनी को टपके आम के बारे में बता रखा था कि उससे अधिक स्वाद कोई भी आम नहीं हो सकता। किन्तु दुर्भाग्य से हमें वहाँ टपका आम नहीं मिला। टपका आम वह आम होता है जो पूरी तरह से पेड़ पर ही पकता है और फिर पकने के बाद अपने आप पेड़ से टपक जाता है। अन्यथा किसान जब आम पूरी तरह से बड़ा हो जाता है तो उसे तोड़कर पाल में पकाता है। पाल अर्थात किसी बन्द जगह जैसे पेटी आदि में पुआल आदि रखकर उनके बीच आमों को रखकर बन्द कर देना। फिर फल की अपनी गर्मी से फल पक जाते हैं। हमारे बचपन में हमने पिताजी को पुआल की जगह अमलतास के पत्ते उपयोग करते देखा था। हम भी पति की नौकरी के समय बड़े बगीचों वाले घरों में रहे ओर ऐसे ही आम पकाते रहे। 

इस फार्म यात्रा के बाद नतिनी माता पिता के साथ घूमने यात्रा पर चली गई। टपका आम खिलाना रह गया। उनके वापिस आने से पहली शाम जब हम पति पत्नी सैर कर रहे थे, तो अचानक बहुत जोर से कुछ गिरने की आवाज आई। हम रूककर क्या गिरा देखने लगे। अचानक पति की नजर पास के आम के पेड़ पर पड़ी जिसपर काफी आम लटक रहे थे। समझ आया कि आम गिरा है। पास खड़ी एक कार की छत पर एक बड़ा सा आम पड़ा हुआ था। मन टपका कहकर बल्लियों उछलने लगा। हम उस आम को घर लाए। वजन किया तो वह ६८४ ग्राम का निकला। वह पूर्णतया पका हुआ था। 

अगले दिन बच्ची ने जीवन का पहला टपका आम खाया। वह किसी विशेष प्रजाति का नहीं था। कभी किसी गुठली से अपने आप उगा एकदम ठेठ देसी आम था। उसका स्वाद भी उसकी तरह से ही ठेठ उसका निजि एकदम अलग था।

घुघूती बासूती 

Friday, May 13, 2022

संयोग



पश्चिम बंगाल के पहाड़ों और सिक्किम से लौट आई. किन्तु उस पर बाद में.
कई अन्य बातें हैं जो अपने को लिखवाना चाह रही हैं.
बागडोगरा हवाईअड्डे पर उतरने के बाद सिलिगुड़ी में एक रेस्टोरेंट में पहली मंजिल या उससे भी कुछ ऊपर( पहाड़ होने के कारण कुछ अधिक चढ़ना पड़ा) खाना खाने गए. खाना ख़त्म होने के बाद निकलने ही वाले थे और हाथ मुंह धो रहे थे कि अचानक पहले एक आदमी भागता हुआ सीढिया उतरने लगा फिर एक स्त्री और फिर कई और लोग. कुछ भगदड़ सी मचती देख मन आशंकित हुआ. पहले हुए फसादों का ध्यान आया. और बच्चों को सचेत किया.
नीचे उतरे तो पता चला कि दो साल का एक बच्चा ऊपर खिड़की से नीचे गिर गया था. इसलिए माता पिता नीचे भागे थे.
अब वे लोग बच्चे को अपनी कार में हस्पताल ले जाते दिखे.
किन्तु बच्चे को कुछ भी नहीं हुआ था. एक खरोंच भी नहीं लगी थी. बात अविश्वसनीय है .
नीचे भी खाना पकता है. वहाँ का कुक शायद धुएँ , गर्मी या फिर रसोई की बोरियत से बाहर साँस लेने आया. अचानक उसने ऊपर देखा और उसे बच्चा गिरता दिखा. उसने बच्चे को लपक लिया. अचानक से वह कुक उस परिवार के लिए न जाने क्या बन गया. भगवान, देवता, रक्षक या न जाने क्या?
मेरा बड़ा मन था कि उस कुक से मिलूँ. उसे देखूं. किसी के प्राण बचाने का अवसर सबको तो नहीं मिलता. न जाने वह स्वयं कितना स्तब्ध होगा. उसने जो किया वह शायद एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया थी और उसने अपने जीवन का सबसे बहुमूल्य काम एक पल में कर दिया.
अपने टी वी रिपोर्टर्स की तरह उससे पूछ सकती थी कि उसे कैसा लग रहा है. किन्तु स्त्री होने का सबसे बड़ा प्रशिक्षण हमें जो जन्म से मिलता है वह है मन की न करना. सो उससे नहीं मिली.
किन्तु अचंभित अब तक हूँ.
घुघूती बासूती